वैभव लक्ष्‍मी का व्रत

वैभव-लक्ष्मी-व्रत-कथा

वैभव लक्ष्मी, मां लक्ष्मी (धन की देवी) के एक दिव्य स्वरूप हैं। हिंदू धर्म में अष्ट लक्ष्मी का विशेष महत्व है, जो मां लक्ष्मी के आठ रूपों को दर्शाते हैं। ये आठ रूप आठ प्रकार की संपत्ति और समृद्धि के प्रतीक हैं — आदि लक्ष्मी (मुख्य देवी), धान्य लक्ष्मी (अन्न की समृद्धि), धैर्य लक्ष्मी (धैर्य और सहनशीलता की शक्ति), गजा लक्ष्मी (हाथियों द्वारा दर्शाया गया वैभव), संतति लक्ष्मी (संतान सुख), विजय लक्ष्मी (जीवन में सफलता), विद्या लक्ष्मी (ज्ञान और शिक्षा) और धन लक्ष्मी (वास्तविक धन या मुद्रा की समृद्धि)।

वैभव लक्ष्मी व्रत हिंदू समाज में, विशेषकर महिलाओं के बीच, अत्यंत लोकप्रिय है। यह व्रत 11 या 21 शुक्रवारों तक किया जाता है। इस व्रत से जुड़ी कई कथाएं और चमत्कारी अनुभव लोगों ने साझा किए हैं, जिनमें बताया गया है कि व्रत करने से इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और वैभव आता है।

इस व्रत को करने से व्रती को “सुख, शांति, वैभव और धन-समृद्धि” की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि जो भी सच्चे मन से यह व्रत करता है, उसकी मनोकामनाएं तुरंत पूरी हो जाती हैं। लेकिन अगर कभी इच्छाएं तुरंत पूरी न हों, तो हर तीन महीने के अंतराल पर यह व्रत दोहराना चाहिए — तब मां वैभव लक्ष्मी अवश्य कृपा करती हैं।

ज्योतिष के अनुसार शुक्रवार का दिन शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है, जो भौतिक सुख-सुविधाएं, ऐश्वर्य, आकर्षण और विलासिता प्रदान करता है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में शुक्रवार को मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। कई लोग यह व्रत साल में कम से कम एक बार जरूर करते हैं ताकि उनके जीवन की समस्याएं — जैसे नौकरी, पढ़ाई, विवाह, बीमारी या व्यापार संबंधी अड़चनें — दूर हो सकें।

मां वैभव लक्ष्मी करुणामयी हैं। जो भी परिवार श्रद्धा और नियमपूर्वक यह व्रत करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

वैभव लक्ष्मी पूजा विधि:

पहले शुक्रवार की सुबह, स्नान करके साफ-सुथरे और ताजे कपड़े पहनें। फिर अपने पूजा स्थल पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके थोड़ा सा पानी छिड़कें, जिससे स्थान शुद्ध हो जाए। अब पूजा स्थान पर एक सादा लाल कपड़ा (लगभग 50 सेमी x 50 सेमी) बिछाएं। उस पर एक मुट्ठी सफेद चावल फैला दें।

अब चावल के ऊपर भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर, श्री यंत्र और अष्ट लक्ष्मी के चित्र स्थापित करें। श्री यंत्र के पास एक छोटा लोटा या प्याला रखें जिसमें पानी हो। चावल के ऊपर एक चांदी का सिक्का और कोई सोने की वस्तु (जैसे सोने की अंगूठी – पहले उसे साफ करके धो लें) भी रखें।

अब हाथ जोड़कर भगवान गणेश, श्री यंत्र और अष्ट लक्ष्मी माता को पूर्ण श्रद्धा से प्रणाम करें। फिर मां लक्ष्मी से मन में या बोलकर विनम्र भाव से कहें:

“माता लक्ष्मी, मैं आज से आपके चरणों में 11 (या 21 – जितने भी व्रत आप करना चाहें) शुक्रवार का व्रत करने का संकल्प लेता/लेती हूं, ताकि आप मुझसे प्रसन्न हों और मेरी यह विशेष मनोकामना पूरी करें (यहाँ अपनी मनोकामना स्पष्ट रूप से बोलें)। धन्यवाद माता।”

शाम की पूजा (शाम 6 बजे के बाद):

शाम को फिर से स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। भगवान गणेश, श्री यंत्र और अष्ट लक्ष्मी के चित्रों को फिर से प्रणाम करें। अब भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर पर चंदन का टीका लगाएं, फिर श्री यंत्र के बीच में और अष्ट लक्ष्मी के चित्र में मुख्य देवी के माथे पर चंदन लगाएं।

अब पूजा की थाली लें जिसमें अगरबत्ती, दीपक (मिट्टी का दीपक जिसमें तेल और बाती हो), और लाल फूलों की पंखुड़ियां हों। अगरबत्ती और दीपक को जलाएं। अब यह थाली भगवान गणेश के सामने सात बार घड़ी की दिशा में घुमाएं और प्रार्थना करें:

“हे श्री गणेश जी, कृपया मेरे लक्ष्मी व्रत में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करें।”

अब वैभव लक्ष्मी दीपक भी जलाएं, जिसे आप रोज़ जलाते हैं।

इसके बाद झुककर श्री यंत्र और अष्ट लक्ष्मी माता को साष्टांग प्रणाम करें — यानी माथा ज़मीन से लगाते हुए पूर्ण सम्मान दें। फिर हाथ जोड़कर “नमस्ते” मुद्रा में नीचे दिया गया मंत्र बोलें

वैभव लक्ष्मी पूजा मंत्र :

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

अब ठीक वैसे ही जैसे आपने भगवान गणेश को पूजा की थाली (जिसमें अगरबत्ती, मिट्टी का दीपक और लाल फूलों की पंखुड़ियाँ हों) अर्पित की थी, वैसे ही अब पहले श्री यंत्र को और फिर अष्ट लक्ष्मी के चित्र को वह थाली अर्पित करें।

पूजा की थाली को प्रत्येक चित्र के चारों ओर सात बार घड़ी की दिशा में घुमाएं — पहले श्री यंत्र के चारों ओर, फिर अष्ट लक्ष्मी माता के चित्र के चारों ओर।

अब माता लक्ष्मी से प्रार्थना करें — मन से या शब्दों में अपनी भावनाएं व्यक्त करें, जैसे कि:

“हे मां लक्ष्मी! कृपया मेरे जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और धन वैभव प्रदान करें।”

भोग (प्रसाद) के लिए गाय के दूध से बनी हुई चावल की खीर अति उत्तम मानी जाती है। लेकिन यदि किसी कारणवश खीर बनाना संभव न हो, तो आप सफेद मिठाई जैसे बर्फी, पेड़ा या मिश्री का भी भोग लगा सकते हैं — ये भी मां लक्ष्मी को बहुत प्रिय हैं।

माता लक्ष्मी की पूजा में विशेष रूप से लाल वस्तुएं अर्पित करें — जैसे लाल चंदन, लाल पुष्प, लाल वस्त्र और लाल गंध। मां को यह रंग अत्यंत प्रिय है।

पूजा के पश्चात “श्री लक्ष्मी स्तवन” या “वैभव लक्ष्मी मंत्र” का जप करें — जितना सहज हो उतना करें, श्रद्धा ही सबसे बड़ा मंत्र है।
श्री यंत्र की पूजा सबसे पहले करें, उसे मां लक्ष्मी के पीछे रखें और पहले उसके चरणों में पुष्प, अक्षत और चंदन अर्पित करें। फिर वैभव लक्ष्मी माता की विधिपूर्वक पूजा करें

अब व्रत की कथा ध्यानपूर्वक पढ़ें या सुनें, क्योंकि व्रत कथा से ही पूजा पूर्ण मानी जाती है।

अंत में, गाय के घी का दीपक जलाकर मां लक्ष्मी की आरती करें — और प्रार्थना करें कि मां लक्ष्मी आपके घर में सदा सुख, शांति, समृद्धि और वैभव बनाकर रखें।

🌸 वैभव लक्ष्मी व्रत का महत्व और पालन विधि 🌸

यह व्रत कोई भी कर सकता है — विवाहित महिलाएं, कुंवारी लड़कियां, पुरुष, यहां तक कि विधवाएं भी। इस व्रत को पूरी श्रद्धा, आस्था और सच्ची मनोकामना के साथ करना चाहिए।
व्रत की अवधि 11 या 21 शुक्रवार होती है — यह संकल्प (व्रत लेते समय) के अनुसार तय किया जाता है।

यह पूजा बहुत सरल और सात्त्विक रूप से की जानी चाहिए। यदि व्रत को शास्त्रों में बताए गए विधि-विधान के अनुसार नहीं किया गया, तो उसका पूर्ण फल नहीं मिलता।

एक बार यदि आपने श्रद्धा से व्रत किया है, तो भविष्य में भी आप इसे दोबारा कर सकते हैं — बस फिर से संकल्प लेकर करना होगा।
मां लक्ष्मी के अनेक रूप हैं, और ‘श्री यंत्र’ उन्हें अत्यंत प्रिय है
श्री यंत्र और अष्ट लक्ष्मी के चित्रों को सच्चे मन से प्रणाम करें — तभी आपकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

व्रत के दिन, जितनी बार संभव हो, पूरे दिन “जय मां लक्ष्मी” का जाप करें।
यदि कभी किसी शुक्रवार आप घर पर न हों, तो व्रत अगले शुक्रवार अपने ही घर में करें — बाहर या किसी और जगह न करें।

व्रत उतने ही शुक्रवार तक करें जितने आपने संकल्प के समय तय किए थे — न कम, न ज़्यादा।

🌼 शनिवार सुबह क्या करें? 🌼

शुक्रवार की पूजा में जो लाल कपड़े पर चावल रखे थे, उन्हें शनिवार सुबह पक्षियों को डाल दें
(चावल को पका भी सकते हैं, लेकिन यह ज़रूरी नहीं है।)

श्री यंत्र और अष्ट लक्ष्मी के चित्र, और वह लाल कपड़ा सावधानी से रखें — ताकि अगले शुक्रवार फिर उपयोग में लिया जा सके।

🌺 अंतिम शुक्रवार की विशेष पूजा विधि: 🌺

जब व्रत का आखिरी शुक्रवार आए (11वां या 21वां), उस दिन पूजा थोड़ी पहले करें ताकि बाद में आप प्रसाद और व्रत की पुस्तकें बांट सकें।

  • मां लक्ष्मी को एक नारियल और मीठा चावल (खीर) अर्पित करें।
  • फिर वह मिठाई 7 महिलाओं को बांटें — यह मां की कृपा पाने का विशेष तरीका है।
  • इसके बाद, “वैभव लक्ष्मी व्रत” की पुस्तकें 7, 11 या 21 लोगों को वितरित करें (कोई भी विषम संख्या हो सकती है)।
    (आमतौर पर ये विवाहित महिलाओं को दी जाती हैं, लेकिन मेरा सुझाव है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा से यह व्रत करना चाहे, उसे दें।)

वैभव लक्ष्मी कथा:

बहुत साल पहले एक बड़ा शहर था, जहाँ हजारों लोग रहते थे। उस ज़माने में लोग खुशहाल सामाजिक जीवन बिताते थे। वे एक-दूसरे से मिलते, साथ बैठते और अपने समय का आनंद लेते थे। उस समय लोगों की ज़िंदगी पूरी तरह अलग थी। उस शहर के लोग अपनी-अपनी दुनिया में इतने व्यस्त थे कि भक्ति, दया, सहानुभूति और प्रेम जैसी गुणों का कहीं कम ही पता चलता था। वहाँ शराब, जुआ, रेस, धोखा-धड़ी, गलत संबंध और कई तरह की बुराइयाँ फैल चुकी थीं।

लेकिन जैसा कि कहते हैं, काले बादलों के बीच हमेशा एक चाँदी की लाइन होती है। उम्मीद की रोशनी निराशा के हजारों बादलों में चमकती रहती है। बुराइयों के बीच भी कुछ धर्मपरायण लोग थे, जो कमल की तरह कीचड़ में खिलते थे। उनमें से शीला और उसके पति भी थे। शीला एक धार्मिक और संतुष्ट स्वभाव वाली महिला थी, और उसका पति भी सरल और नेकदिल था।

शीला और उसका पति सच्चाई और ईमानदारी से जीते थे। वे कभी किसी से बुरा व्यवहार नहीं करते थे। वे भगवान की पूजा में समय बिताकर खुश रहते थे। उनकी ज़िंदगी आदर्श थी, लोग उनकी तारीफ़ करते नहीं थकते थे।

पर नियति को कौन समझ पाया? कहा जाता है कि भाग्य की किताब किसी देवी के हाथ में होती है। कभी राजा गरीब बन जाता है, तो कभी गरीब राजा। किस्मत एक पल में सब बदल सकती है। शीला के पति बुरी संगति में पड़ गए। उनके दोस्तों ने उनके विचार और आदतें बिगाड़ दीं। वे सपने देखने लगे कि करोड़पति बनेंगे, लेकिन वे खुद को भिखारी बना बैठे। शराब, जुआ, रेस और अन्य बुरे कामों में उलझ गए। अंत में वे अपनी सारी बचत और शीला के आभूषण तक खो बैठे।

पहले जब वे खुश थे, भगवान की पूजा करते थे, अब उनकी हालत इतनी खराब थी कि भूखे पेट रहते थे। शीला को भी पति के गालियों का सामना करना पड़ता था। फिर भी, शीला धीरज रखकर भगवान पर विश्वास बनाए रखी। उसने दुख सहा और आशा की किरण खोजी।

एक दिन दोपहर को किसी ने उनके दरवाज़े पर दस्तक दी। सोचते हुए कि इतने गरीब होने के बाद कोई आएगा भी कैसे, फिर भी शीला ने मेहमान सत्कार की परंपरा निभाई और दरवाज़ा खोला।

वहाँ एक बूढ़ी महिला खड़ी थी। उसका चेहरा दिव्य प्रकाश से चमक रहा था, उसकी आँखों में प्रेम की अमृत बूंदें थीं। शीला के दिल में एक अजीब शांति हुई। बूढ़ी महिला ने पूछा, “शीला, क्या तुम मुझे नहीं पहचानती?”

शीला ने विनम्रता से कहा, “माँजी, मैं आपसे मिलने पर खुश हूँ, लेकिन मुझे लगता है मैं आपको नहीं जानती।”

महिला ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं वही हूँ, जो हर शुक्रवार देवी लक्ष्मी के मंदिर में आती थी। जहाँ तुम देवी की स्तुति करती थीं।”

शीला ने कहा कि पति की बुराई की वजह से वह मंदिर जाना छोड़ चुकी थी। बूढ़ी महिला ने कहा, “तुम्हारे गायन की मिठास मुझे याद है। इसलिए मैं तुम्हें देखने आई हूँ।”

शीला रो पड़ी और बूढ़ी महिला ने उसे सहारा दिया। उसने कहा, “खुशी और दुख सूर्य की गर्मी और छाया जैसे हैं। सब कुछ ठीक हो जाएगा। अब मुझे अपने दुख बताओ, मैं तुम्हें उपाय बताऊंगी।”

शीला ने सब कुछ बताया कि कैसे पति बुरी संगति में पड़ गए, शराब-शराबी और जुआ खेलने लगे, और वे अब बहुत गरीब हो गए हैं।

बूढ़ी महिला ने कहा, “यह ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ रखो। यह सरल और फलदायक है। यह व्रत हर शुक्रवार स्नान के बाद साफ कपड़े पहन कर पूर्व दिशा की ओर बैठकर करें। श्रीयंत्र की पूजा करें, दीप जलाएं, तिलक लगाएं और सात या इक्कीस शुक्रवार तक इसे निभाएं। अंत में सात कन्याओं को प्रसाद बांटें।”

शीला ने व्रत का पूरा तरीका सुना और कहा, “माँजी, मैं इसे जरूर करूंगी।”

बूढ़ी महिला ने कहा, “मैं देवी लक्ष्मी हूँ, जो तुम्हें सही रास्ता दिखाने आई हूँ।”

अगले दिन से शीला ने व्रत करना शुरू किया। उसके पति में धीरे-धीरे सुधार हुआ। उन्होंने बुरी आदतें छोड़ दीं और मेहनत से जीवन सुधार लिया। शीला फिर से खुशहाल हो गई।

दूसरी महिलाएं भी इस व्रत को करने लगीं। शीला की कहानी सबके लिए प्रेरणा बन गई।

जय माँ वैभव लक्ष्मी!

लक्ष्मी जी की आरती:

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
           ॐ जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
           ॐ जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
           ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
            ॐ जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
           ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
           ॐ जय लक्ष्मी माता॥

शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
           ॐ जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
           ॐ जय लक्ष्मी माता॥
सब बोलो लक्ष्मी माता की जय,लक्ष्मी नारायण की जय। 

महालक्ष्मी स्तवन:

मयि कुरु मङ्गलमंबुजवासिनि मंगलदायिनि मञ्जुगते,
मतिमलहारिणि मञ्जुलभाषिणि मन्मथतातविनोदरते।

मुनिजनपालिनि मौक्तिकमालिनि सद्गुणवर्षिणि साधुनुते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥१॥

कलिमलहारिणि कामितदायिनि कान्तिविधायिनि कान्तहिते,
कमलदलोपमकम्रपदद्वय शिञ्जितनूपुरनादयुते।

कमलसुमालिनि काञ्चनहारिणी लोकसुखैषिणि कामिनुते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥२॥

कुवलयमेचकनेत्रकृपापरिपालित संश्रित भक्तकुले,
गुरुवर शंकर सन्नुतितुष्टिसुवृष्टसुहेममयामलके।

रविकुलवारिधि चन्द्रसमादरमन्त्रगृहीतसुपाणितले,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥३॥
कुलललनाकुल लालितलोलविलोचनपूर्णकृपाकमले,
चलदलकावलि वारिदमध्यगचन्द्रसुनिर्मल फालतले।

मणिमयभासुरकर्णविभूषण कान्तिपरिष्कृतगण्डतले,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥४॥

सुरगण दानवमण्डललोडित सागरसंभवदिव्यतनो,
सकलसुरासुरदेवमुनीनतिहाय च दोषदृशा हि रमे।

गुणगणवारिधिनाथमहोरसि दत्तसुमावलि जातमुदे,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥५॥

कनकघटोपमकुंकुमशोभितहारसुरञ्जित दिव्यकुचे,
कमलजपूजितकुंकुमपङ्किल कान्तपदद्वय तामरसे।

करधृतकञ्जसुमे कटिवीतदुकूलमनोहरकान्तिवृते,

जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥६॥
सुरपतिपूजनदत्तमनोहरचन्दनकुङ्कुमसंवलिते,
सुरयुवतीकृतवादननर्तन वीजनवन्दन संमुदिते।

निजरमणारुणपादसरोरुहमर्द्दनकल्पन तोषयुते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥७॥

दिनमणिसन्निभदीपसुदीपितरत्नसमावृतदिव्यगृहे,
सुतधनधान्यमुखाभिध लक्ष्म्य़भिसंवृतकान्त गृहीतकरे।

निजवनपूजन दिव्यसमर्चन वन्दन कल्पित भर्तृमुदे,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥८॥

अनवधिमङ्गलमार्तिविनाशनमच्युतसेवनमम्ब रमे,
निखिल कलामति मास्तिकसंगममिन्द्रियपाटवमर्पय मे।

अमितमहोदयमिष्टसमागममष्टसुसंपदमाशु मम,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥९॥
करतलशुक्लसुमावलिनिर्मितहारगजीवृतपार्श्वतले,
कमलनिवासिनि शोकविनाशिनि दैव सुवासिनि लक्ष्म्यभिधे ।

निजरमणारुणचन्दनचर्चितचंपकहारसुचारुगले,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥१०॥

अनघमनन्तपदान्वितरामसुदीक्षित सत्कृतपद्यमिदं,
पठति शृणोति च भक्तियुतो यदि भाग्यसमृद्धिमथो लभते ।

द्विजवरदेशिकसन्नुतितुष्टरमे परिपालयलोकमिमं,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥११॥

श्री महालक्ष्मी स्तवम्, जिसे इन्द्रकृत महालक्ष्मी स्तोत्र भी कहा जाता है, देवी महालक्ष्मी की स्तुति में रचित एक महत्वपूर्ण मंत्र है। यह स्तोत्र देवी महालक्ष्मी के 16 नामों का उल्लेख करता है, जो उनके विभिन्न रूपों और गुणों का प्रतीक हैं।

क्षमा याचना:

ॐ यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च,
तानि सर्वाणि विनश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे पदे।